Sunday 18 August 2013

-देवता

------------देवता  ----------------
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खुद की जिद में हार गयी खुद को 
अपने आप में जिंदा मार गयी खुद को 
ये कैसी दीवानगी है,पागलपन है मेरा 
हर वक़्त हर लम्हा निसार गयी खुद को 
एक साया सा घूमता रहता है साथ मेरे
हर शय,हर पहलु में उतार गयी खुद को 
क्यों सोचती हूँ,क्यों मानती हूँ हर वक़्त
तेरी यादों के सदके उतार गयी खुद को 
इबादत ही तेरी करती है हर वक़्त ज़ीनत  
'ए देवता, तुझे स्वीकार गयी खुद को
---------------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'  

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