Wednesday 14 August 2013

मुस्कुराया करती हूँ

मुस्कुराया करती हूँ ---------------------------------------------- ज़िंदगी क्या है इक छलावा है एक जादू है,एक परदा है सांस के टूटने से पहले तक, हम कई साँचो में ढलते हैं फ़कत, गम को जी लेते हैं तन्हाई में अश्क पीते हैं मगर किस्तों में दर्द सहते हैं,आह भरते हैं चीखते भी हैं और चिल्लाते भी पर चटखने की जो आवाज़ बने उसपे ताला लगाए लगाये फिरते हैं हम ज़माने में अपना चेहरा लिए दोस्तों मुस्कुराए फिरते हैं किसको फुर्सत है दर्द को समझे किसको फुर्सत है जख्म को देखे किसको फुर्सत है आह,भी,सुन ले किसको फुर्सत है मेरा चेहरा पढ़े किसको फुर्सत है मेरा मरहम हो सूर्य किरने लपेटे मैं अक्सर तेरी महफ़िल में जाया करती हूँ किस कलेजे से,जाने कैसे मैं दोस्तों मुस्कुराया करती हूँ दोस्तों मुस्कुराया करती हूँ ------------------कमला सिंह ज़ीनत

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