Saturday 17 May 2014

मेरी एक और ग़ज़ल  पेश है 
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उसी की मेहरबानी है,करम है 
मेरी आँखों में पानी है करम है 

वो मुझको भूल जाये गम नहीं है 
कुछ तो उसकी निशानी है करम है 

मेरे अशसार में ए मेरे मालिक 
मुसल्सल इक रवानी है करम है 

मैं पढ़ते रहती हूँ दिन रात जिसको 
कोई  जिंदा  कहानी है करम है 

कहाँ तक उसको जीते हम बताओ 
ये दुनिया आनी जानी है करम है 

ए 'ज़ीनत' दिल पे जिसके राज़ तेरा 
वही  एक  राजधानी  है  करम है 
------कमला सिंह 'ज़ीनत'

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