Tuesday 24 June 2014

एक ख़्याल ऐसा भी 
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एहसासों की दुनियां से दूर 
लाशों के शहर में 
चली आई हूँ 
घरौंदा भी बनाया 
और बन गयी मैं 
एक ज़िंदा लाश 
न कोई एहसासात 
न कोई ज़ज़्बात 
न कोई मुलाक़ात 
रह गयी एक 
ज़िंदा लाश 
न कोई आस 
न कोई प्यास 
चलती फिरती 
बस … …… 
ज़िंदा लाश 
--कमला सिंह 'ज़ीनत '

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