Monday 9 March 2015

मेरी सखी , वह रंग लगा तू मन मोरा रंग जाए
तन भीगे , और मन न भीगे , ऐसा रंग न भाए
बरसाने की , ओह रे होली , जो देखे तर जाए
लठ की चोट को तरसे कोई,लठ कोई बरसाए
डा.कमला सिंह 'ज़ीनत'

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