Sunday 7 June 2015

मेरी एक ग़ज़ल 
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जिस्म  मुझसे  ये चाल  चलता है 
तुझको सोचूं तो दिल निकलता है

बाखुदा  सिर्फ - सिर्फ  तेरे  सिवा  
ख़ाना -ए -दिल  में कौन पलता है 

वो  तो  रुत है  बदलने  वाली चीज़ 
तू  तो  सूरज  है  क्यूँ   बदलता  है 

कोई   सूरत  नहीं   मेरे    क़ाबिल 
दिल  के साँचे  में  तू  ही  ढलता है 

रात दिन मेरे  दिल की धड़कन  में 
एक   राही   सा   तू   टहलता   है 

तेरे   रहने   से  पास  'ज़ीनत'  के 
दिल   हमारा   बहुत   बहलता  है 
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'

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