Tuesday 5 April 2016

पुस्तक से एक और ग़ज़ल
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सहन अपना बाँट दीजिये
तल्ख़ियों को पाट दीजिये
दूसरों को भी मिले सबक़
इक नया प्लॉट दीजिये
लिख के पूरी अपनी ज़िंदगी
डॉट - डॉट - डॉट दीजिये
दौर अब नहीं रहा जनाब
भाईयों को डाँट दीजिये
उठ गए जो आपकी तरफ़
उँगलियों को काट दीजिये
ज़िंदगी है फ़िल्म ये ज़ीनत
इक हसीन शॉट दीजिये
----------कमला सिंह 'ज़ीनत'

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-03-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2305 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. खूबसूरत जज़्बात , प्यारी गजल

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  3. बहुत सुन्दर .. नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ...

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