Thursday 30 March 2017

एक प्रयास 
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संग में आप हम तो सर में रहे 
आप अखबार हम ख़बर में रहे 

हमने तो छोड़ दिया बस्ती तक
बस फ़क़त आप ही नगर में रहे 

आप   बारूद  की   खुदाई    थे 
हम तो  सहमे हुए  से डर में रहे 

आपके  नाम  की   चिंगारी  थी 
 और हम मुफ़लिसी के खर में रहे 

जुल्म की आँधियों में गुम तुम थे 
हम  भरी  आँख लिए तर में  रहे

पूछते  क्यूँ  हैं  हाल 'ज़ीनत'  का 
उम्र  भर हम तो दर-ब-दर में  रहे  

----कमला  सिंह 'ज़ीनत'

Wednesday 29 March 2017

शायरी   हो  ना   मेरी  खूब  तो  पानी   लिख  दे 
या तो फिर अहल-ऐ-कलम मुझको ज्ञानी लिख दे 

शेर   उला   मैं   कहे   देती   हूँ  ले   अहले  फ़न 
तू  है  फ़नकार  तो फिर मिसरा-ऐ-सानी लिख दे 

लफ्ज़  दर  लफ्ज़  सूना  देती  हूँ अपने ख़ुद को 
लफ्ज़   दर  लफ्ज़  कोई  मेरी  कहानी  लिख दे 

पेंच   ही  पेंच  बिखेरा   है  हर  एक  मिसरे  में 
होश  मंदी  है  अगर  तुझमेँ   तो  पानी लिख दे 

तेरा  खुद्दार  क़लम   है  तो   ऐ  आक़िल   दौरां 
पूरी  दुनियाँ  को  तू  ईमान  से  फ़ानी  लिख दें 

ग़ौर  से  सुन  ले  तू 'ज़ीनत' को  ज़रा  देर तलक 
बा शऊरी   है   अगर  मुझमे  ज़बानी  लिख   दे 

-----कमला सिंह 'ज़ीनत'